📋 भूमिका (Background)
उहद की जंग 7 शवाल, 3 हिजरी (23 मार्च 625 ई.) को मदीना के उत्तर में उहद पर्वत के पास लड़ी गई। यह बद्र की जंग के एक साल बाद हुई, जिसमें क़ुरैश ने बद्र की हार का बदला लेने के लिए मदीना पर हमला किया।
इस बार क़ुरैश की सेना ज़्यादा संगठित और बड़ी थी, और उनके साथ महिलाएं भी थीं जो युद्ध के दौरान सैनिकों को उकसाती थीं। मुसलमानों की संख्या लगभग 700 थी, जिनमें 50 तीरंदाज़ों को पैग़म्बर ﷺ ने एक पहाड़ी पर तैनात किया था।
🛡️ सेनाएं और रणनीति (Forces & Strategy)
- मुस्लिम सेना: लगभग 700 योद्धा, 50 तीरंदाज़ पहाड़ी पर
- क़ुरैश सेना: लगभग 3000 सैनिक, 200 घोड़े, 700 ऊँट
- प्रमुख मुस्लिम योद्धा: अली र.अ., हमज़ा र.अ., अबू दुजाना र.अ., तल्हा र.अ., अब्दुल्लाह इब्न जुबैर र.अ.
- प्रमुख क़ुरैश नेता: अबू सुफ़यान, खालिद बिन वलीद, अम्र बिन आस, हिंद बिन उतबा
⚔️ युद्ध का क्रम (Battle Sequence)
- शुरुआत में मुसलमानों को बढ़त मिली — हमज़ा र.अ. ने कई दुश्मनों को परास्त किया।
- पैग़म्बर ﷺ ने तीरंदाज़ों को आदेश दिया कि वे अपनी जगह न छोड़ें, चाहे मुसलमान जीत जाएं या हारें।
- जब मुसलमानों ने जीत की ओर बढ़ना शुरू किया, तो कुछ तीरंदाज़ों ने लूट के लालच में पहाड़ी छोड़ दी।
- इसका फायदा उठाकर खालिद बिन वलीद ने पीछे से हमला किया और मुसलमानों को भारी नुकसान हुआ।
- हमज़ा र.अ. शहीद हुए, पैग़म्बर ﷺ घायल हुए, और अफवाह फैली कि वे शहीद हो गए हैं।
🕊️ सबक और रहमत (Lessons & Mercy)
- अनुशासन का उल्लंघन कितना नुकसानदायक हो सकता है — यह इस युद्ध ने सिखाया।
- पैग़म्बर ﷺ ने घायल होने के बावजूद उम्मत को हिम्मत दी और पीछे हटने से रोका।
- अल्लाह ने कुरआन में इस युद्ध का ज़िक्र कर मुसलमानों को सब्र और तौबा की तालीम दी (Surah Aal-e-Imran, Ayat 152–160)।
🌟 प्रमुख शहीद (Martyrs of Uhud)
- हमज़ा इब्न अब्दुल मुत्तलिब र.अ. — पैग़म्बर ﷺ के चाचा और इस्लाम के शेर
- अब्दुल्लाह इब्न जुबैर र.अ.
- मुसअब इब्न उमैर र.अ.
- 85 से अधिक सहाबा इस युद्ध में शहीद हुए
📜 कुरआनी मार्गदर्शन (Qur'anic Reflections)
अल्लाह ने इस युद्ध के बाद मुसलमानों को तसल्ली दी और कहा:
“और तुम कमज़ोर मत पड़ो और न ही उदास हो, तुम ही ऊँचे रहोगे अगर तुम मोमिन हो।”
— Surah Aal-e-Imran (3:139)
🌙 निष्कर्ष (Conclusion)
उहद की जंग इस्लाम की फतह नहीं, बल्कि सब्र और ईमान की परीक्षा थी। यह दिखाता है कि जीत सिर्फ़ संख्या या ताक़त से नहीं, बल्कि अल्लाह की मदद और पैग़म्बर ﷺ की आज्ञा के पालन से मिलती है।
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