भारत के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जो न केवल हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं, बल्कि आम नागरिकों के मन में भय भी पैदा करती हैं। ऐसी ही एक घटना थी 14 अप्रैल 2006 को दिल्ली की जामा मस्जिद में हुआ बम धमाका, जिसने देश को हिला कर रख दिया।
क्या हुआ था उस दिन?
14 अप्रैल 2006 को शाम के वक्त, जब रमज़ान का माहौल था और मस्जिद के आसपास रोज़ की तरह चहल-पहल थी, उसी समय जामा मस्जिद के पास दो सिलसिलेवार धमाके हुए।
इन धमाकों में करीब 13 लोग घायल हो गए थे। ये धमाके मस्जिद के गेट नंबर 1 के पास साइकिल में लगे बमों के जरिए किए गए थे।
धमाकों का मकसद
हालांकि इन धमाकों में कोई जानमाल की बड़ी हानि नहीं हुई, लेकिन यह हमला भारत की धार्मिक एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के ताने-बाने पर हमला था। हमले का मकसद धार्मिक उन्माद फैलाना और लोगों के बीच डर पैदा करना माना गया।
जांच और कार्रवाई
घटना के बाद दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां हरकत में आईं। इलाके को सील कर जांच शुरू की गई।
हालांकि शुरुआती जांच में कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए, लेकिन इस हमले ने सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना कर दिया और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर गंभीरता बढ़ी।
लोगों की प्रतिक्रिया
घटना के बाद न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश में आक्रोश था। हर धर्म, वर्ग और समुदाय के लोगों ने एक सुर में इस कायरतापूर्ण कृत्य की निंदा की।
लोगों ने एक-दूसरे को सांत्वना दी और यह संदेश दिया कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को कोई भी ताकत नहीं तोड़ सकती।
निष्कर्ष
जामा मस्जिद पर हुआ यह हमला सिर्फ एक धार्मिक स्थल पर हमला नहीं था, बल्कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव पर चोट थी।
यह घटना आज भी हमें याद दिलाती है कि हमें सतर्क रहकर नफरत और आतंक के खिलाफ एकजुट रहना होगा।
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