सम्राट अशोक – भारत का महान शासक और धर्मप्रिय सम्राट

भारत के इतिहास में कई महान सम्राट हुए हैं, लेकिन सम्राट अशोक (Ashoka the Great) का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। वे मौर्य साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजा थे और उनकी शासन प्रणाली, नीतियाँ और धम्म (धर्म) की अवधारणा ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया को प्रभावित किया। उनकी कहानी युद्ध, विजय, आत्मबोध और शांति की अद्भुत यात्रा है।


प्रारंभिक जीवन और युवावस्था

सम्राट अशोक का जन्म लगभग 304 ईसा पूर्व में हुआ था। वे सम्राट बिंदुसार के पुत्र थे और मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य उनके दादा थे। उनके बचपन के बारे में अधिक प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन कहा जाता है कि वे बचपन से ही बहुत बुद्धिमान, शक्तिशाली और कुशल योद्धा थे।

उनके अनेक भाइयों में से, अशोक को सिंहासन के योग्य नहीं माना जाता था, लेकिन उनकी युद्ध-क्षमता और प्रशासनिक दक्षता के कारण वे बिंदुसार के सबसे प्रमुख उत्तराधिकारी बन गए।



सम्राट अशोक का राजतिलक

273 ईसा पूर्व में बिंदुसार की मृत्यु के बाद, अशोक को सत्ता संघर्ष का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने विरोधियों को हराकर 268 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र (पटना) में राजतिलक कराया और मौर्य साम्राज्य के शासक बने।

शासन सँभालते ही उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार करना शुरू कर दिया और भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक बन गए।



कलिंग युद्ध – जीवन का सबसे बड़ा मोड़

261 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया।
कलिंग (आज का ओडिशा) एक स्वतंत्र राज्य था, जो व्यापार और संस्कृति का बड़ा केंद्र था। अशोक ने इसे अपने साम्राज्य में मिलाने के लिए भीषण युद्ध किया।

कलिंग युद्ध के परिणाम:

  • इस युद्ध में 1 लाख से अधिक लोग मारे गए, 1.5 लाख लोग बंदी बना लिए गए और हजारों सैनिक घायल हुए।
  • युद्ध के बाद, जब अशोक ने मृत सैनिकों, जलते घरों और रोते हुए परिवारों को देखा, तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया।
  • उन्होंने इस युद्ध को अपनी सबसे बड़ी गलती और पाप माना।
  • इसके बाद, अशोक ने युद्ध और हिंसा का मार्ग त्याग दिया और बौद्ध धर्म की शरण में आ गए।


बौद्ध धर्म की ओर परिवर्तन

कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया और भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाया। उन्होंने अहिंसा, करुणा और धर्म को अपने शासन का मूल आधार बनाया।

उनकी नीतियों में शामिल थे:

  • अहिंसा (किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना)
  • धम्म (धर्म) का प्रचार
  • सभी धर्मों के प्रति सम्मान
  • जनकल्याणकारी योजनाएँ (अस्पताल, सड़कों, कुओं और धर्मशालाओं का निर्माण)

उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा, जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किया।



अशोक का शासन और प्रशासन

अशोक का शासन अत्यधिक संगठित और जनकल्याणकारी था। उनकी कुछ प्रमुख नीतियाँ और प्रशासनिक कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. धम्म महामात्रों की नियुक्ति – धर्म और न्याय के प्रचार के लिए विशेष अधिकारियों को नियुक्त किया गया।
  2. सड़क और यातायात सुविधाएँ – उन्होंने पूरे साम्राज्य में सड़कों, कुओं और धर्मशालाओं का निर्माण कराया।
  3. पशु और मानव अधिकारों की सुरक्षा – उन्होंने बलि प्रथा को रोका और पशु हत्या पर प्रतिबंध लगाया।
  4. राज्य की एकता और सांस्कृतिक विकास – उन्होंने सभी धर्मों को सम्मान दिया और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।


अशोक के शिलालेख और स्तंभ

सम्राट अशोक ने अपने संदेशों को जनता तक पहुँचाने के लिए शिलालेखों और स्तंभों का निर्माण करवाया।

  • ये शिलालेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, ग्रीक और अरामाइक लिपियों में लिखे गए थे।
  • इनमें धम्म, अहिंसा और नैतिक मूल्यों का प्रचार किया गया।
  • प्रमुख अशोक स्तंभों में सारनाथ का सिंह स्तंभ सबसे प्रसिद्ध है, जो आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक भी है।


अंतिम समय और विरासत

सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ। उनके बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।

अशोक की महानता क्यों अमर है?

  • वे युद्ध से शांति की ओर जाने वाले पहले सम्राट थे।
  • उन्होंने बौद्ध धर्म को वैश्विक स्तर पर फैलाया।
  • उनका शासन अहिंसा और जनकल्याणकारी योजनाओं का आदर्श उदाहरण है।
  • उनका धम्म नीति आज भी नैतिक शासन और प्रशासन का प्रतीक मानी जाती है।


निष्कर्ष

सम्राट अशोक न केवल भारत के महानतम सम्राटों में से एक थे, बल्कि वे पूरी दुनिया में शांति, अहिंसा और मानवता के प्रतीक बन गए। उनके द्वारा अपनाई गई नीतियाँ और बौद्ध धर्म का प्रचार आज भी कई देशों में देखा जा सकता है।

"अशोक – एक योद्धा से एक धर्मप्रिय सम्राट बनने की प्रेरणादायक गाथा!"

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