🕌 प्रारंभिक जीवन और इस्लाम से लगाव (Early Life and Devotion to Islam)
सलाहुद्दीन अय्यूबी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का जन्म 1137 ई. में इराक़ के तिकरित शहर में हुआ। वे कुर्द नस्ल से थे और बचपन से ही इस्लामी तालीम, तक़वा और बहादुरी में रुचि रखते थे।
उनके वालिद एक नेक और धार्मिक व्यक्ति थे, जिन्होंने सलाहुद्दीन को कुरआन, हदीस और युद्ध-कला की शिक्षा दी। उनका पालन-पोषण एक ऐसे माहौल में हुआ जहाँ दीन और दलील दोनों का संतुलन था।
⚔️ जिहाद और फतह-ए-कुद्स (Jihad and the Liberation of Jerusalem)
सलाहुद्दीन अय्यूबी र.अ. ने क्रूसेड्स (ईसाई युद्धों) के दौरान इस्लामी फौज की कमान संभाली। उन्होंने 1187 ई. में बैतुल मुक़द्दस (यरुशलम) को ईसाई कब्जे से आज़ाद कराया — लेकिन बिना खून-खराबे के।
उनकी रहमत और इंसाफ़ की मिसाल ये थी कि उन्होंने दुश्मनों को भी माफ़ किया और आम नागरिकों को सुरक्षा दी। उन्होंने यह साबित किया कि इस्लामी जिहाद सिर्फ़ तलवार का नाम नहीं, बल्कि इंसाफ़ और रहमत का पैग़ाम है।
⚖️ इंसाफ़ और रहमत की हुकूमत (Justice and Merciful Governance)
- गरीबों के लिए अस्पताल और मदरसे बनवाए
- ज़कात और खैरात का सिस्टम मज़बूत किया
- हर मज़हब के लोगों को बराबरी का हक़ दिया
- अमन, इबादत और इंसानियत को प्राथमिकता दी
सलाहुद्दीन की हुकूमत में हर नागरिक को सुरक्षा, शिक्षा और इंसाफ़ मिलता था — चाहे वो मुसलमान हो या ग़ैर-मुस्लिम।
🧕 अख़लाक़ और सादगी (Character and Simplicity)
सलाहुद्दीन अय्यूबी र.अ. की ज़िंदगी सादगी और तक़वा से भरी थी। वे खुद सादा कपड़े पहनते थे, अपने लिए महल नहीं बनवाया, और रातों को तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते थे।
वो अपने सैनिकों के साथ खाना खाते और ज़मीन पर सोते थे। उनकी ज़िंदगी हमें सिखाती है कि असली लीडरशिप दिखावे से नहीं, सेवा और इबादत से आती है।
🩸 वफ़ात और विरासत (Death and Legacy)
सलाहुद्दीन अय्यूबी र.अ. की वफ़ात 1193 ई. में दमिश्क (सीरिया) में हुई। उनके पास कोई बड़ी दौलत नहीं थी — लेकिन उनके नाम पर इस्लाम की सबसे बड़ी फतहें थीं।
उनका मजार आज भी दमिश्क में मौजूद है, और उनकी विरासत हर मुसलमान के दिल में ज़िंदा है। उन्हें आज भी "शेर-ए-इस्लाम""रहमत वाला फौजी"
🌟 निष्कर्ष (Conclusion)
सलाहुद्दीन अय्यूबी रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़िंदगी हमें सिखाती है कि हक़ के लिए लड़ना दुश्मन को माफ़ करना
इंसाफ़ से हुकूमत करनाSapno Ke Khyalat की तरफ़ से सुलतान सलाहुद्दीन अय्यूबी र.अ. को सलाम —
“जिसने तलवार से नहीं, इंसाफ़ और रहमत से दिल जीते।”
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